Singrauli News : भगवान श्रीराम जी के चरित्र को जीवन में उतारने से जीवन सुन्दर होगा: राजन जी महाराज

Vikash Kumar Yadav
4 Min Read
Singrauli News

Singrauli News : देश-विदेश के प्रख्यात कथावाचक श्री राजन जी महाराज ने जिला मुख्यालय बैढ़न के एनसीएल ग्राउंड बिलौंजी में श्रीराम कथा का प्रवचन करते हुये कहा कि संत महापुरूष विद्वतजन पूर्वाचार्य सब कहते हैं कि यदि श्री रामचरित मानस को समझना है तो बालकाण्ड का प्रारम्भ, अयोध्या कांड का मध्य और उत्तरकांड का अंत समझिये। बाल का प्रारम्भ मानस सर्व जो प्रसंग है, अयोध्या कांड का मध्य भरत भईया का जो चरित्र है और उत्तरकांड का अंत श्री कार्यभूसिंगी एवं गरूण जी का जो संवाद है ये मानस का सार्व तत्व है। मानस में सुन्दरकांड एक ऐसा कांड है जिसमें कोई विश्राम अस्थल नही है।

इसीलिए लोग उसका निरन्तर पाठ करते आ रहे हैं। इसी क्रम में श्री राजन जी महाराज की निवेदन करते हुये कहा कि केवल सुन्दर कांड पढ़ने से सब सुन्दर नही होगा। भगवान श्री राम जी के चरित्र को जीवन में उतारने से जीवन सुन्दर होगा। अयोध्या काण्ड को महापुरूषों ने मनुष्य के जीवन की युवा अवस्था अर्थात जवानी बताया है। बचपन में मन अपने बस में नही रहता। बचपन में बच्चा चंचल रहता है। बुढ़ापे में शरीर अपने बस में नही रहता। चाहकर भी न भोजन कर पाएंगे न ही पूजन कर पाएंगे। तत्पश्चात श्री महाराज जी कहते हैं कि इसी जवानी में जो करना है, बनना है, अटकना है, भटकना है, पहुंचना है और जो कुछ भी होना है, जवानी में ही होना है। इसीलिए जिसने जवानी को साध लिया उसका बुढ़ापा अपने-आप सिद्ध हो जाएगा। कुछ करने की आवश्यकता नही है। ये अयोध्या कांड युवा अवस्था की कथा है। अर्थात जवानी की कथा है। जो मनुष्य आलस का त्याग कर के जवानी में पुरूशार्थ में लगा हुआ है । ओ तप रहा है। जो अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर है ओ तप रहा है। ये जवानी की तपस्या है। बचपन में यदि बच्चा अपने मन की चंचलता को शांत कर के एक स्थान पर बैठा हुआ है ओ तप रहा है और बुढ़ापे में जो ऊर्जा है वो जीहवा पर चली आती है।

बुढ़ापे में जिसको मौन होने का ढंग आ गया वो तपस्या कर रहा है और श्री महाराज की कहते हैं कि जो बुढ़ापे में मौन होना सीख गया वो अपने बुढ़ापे को सुखी कर गया। बात थोरी कड़वी है। लेकिन बुढ़ापे में यदि सुखी होना है तो मौन होने का स्वभाव बनाइये। अयोध्या कांड में ऐसा आपको कोई नही मिलेगा जो तप नही रहा है। वही आगे बताते हुये कहते हैं कि पिता के सत्ता को संतान तभी संभाल सकता है जब संतान के जीवन में पिता के जीवन जितनी तपस्या होगी। बिना तपे जीवन में कुछ मिलने वाला नही है और बिना पते मिल भी जाए तो वो टिकने वाला नही है। जैसे आएगा वैसे चला भी जाएगा। अयोध्या कांड के प्रारम्भ में श्री गोस्वामी तुलसीदास महाराज जी ने भूतभावन शिव भगवान को वंदन किया है। श्री गोस्वामी जी ने भगवान शिव जी का वंदन इसलिए किया है क्योंकि उनका स्वभाव हमारे जीवन में भी आए। क्योंकि जवानी में बहुत झंझटे आएंगी। लेकिन उन झंझटों में कैसे आनन्द में रहना है यही जीवन की कला है। उक्त कथावाचक में एसपी निवेदिता गुप्ता, वीरेन्द्र दुबे, स्वेता दुबे, अर्चना नागेन्द्र सिंह, व्हीपी उपाध्याय, शिवबहादुर सिंह, शशिकांत शुक्ला, रूपेश पाण्डेय, केडी सिंह, प्रवीण शुक्ला, मुकेश तिवारी सहित अन्य भारी संख्या में मौजूद रहे।

Singrauli News : पटाखा दुकानों का संचालन निर्धारित गाइडलाइन के अनुसार ही किया जायेंः- कलेक्टर

Share This Article
Leave a comment
error: Content is protected !!