Singrauli Waidhan News: नगर निगम प्रशासन द्वारा शिवाजी कॉम्प्लेक्स के कथित घोटाले को तूल देकर एक ठेकेदार को नाजायज तरीके से 27 लाख रूपये का फर्जी भुगतान कर दिया गया है। जिसको लेकर पिछले दिनों हुई परिषद की बैठक में फाइल तक मंगवा ली गयी थी, लेकिन कार्रवाई का आश्वासन देकर इस घोटाले को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। वहीं रॉयल राजपूत संगठन भी आंदोलित है और निरंतर कार्यवाही की मांग कर रहा है।
बुधवार को भी संगठन के सदस्यों ने नगर निगम आयुक्त से मुलाकात कर अब तक की गई कार्यवाही की जानकारी मांगी। जिस तरह से इस मामले को दबाने का प्रयास किया जा रहा है,
उससे स्पष्ट है कि इस घोटाले में बड़े-बड़े लोगों का हाथ है। जब कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला को इस मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने बिंदुवार जांच कराने का आश्वासन दिया है। शिवाजी कॉम्प्लेक्स के कथित घोटाले की सच्चाई सभी को पता है लेकिन दुर्भावनावश EE पर कार्रवाई कर स्वयं को पाक साफ दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। निगमायुक्त डीके शर्मा द्वारा जारी की गई नोटिस का जवाब कम से कम दो अधिकारियों ने दे रखा है, इसके बावजूद परिषद की बैठक में गलत जानकारी देकर उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया है। जबकि इस कार्यवाही में कई अधिकारी नफ सकते थे लेकिन आयुक्त के दरिया दिली से सिर्फ 2 अधिकारियो को ही कार्यमुक्त कर दिया जाना व अन्य अधिकारियो को बचने का प्रयास करना कहीं न कहीं आयुक्त के गले का फांस बनता जा रहा है। आने वाले दिनों में इन सब की चर्चा MIC की बैठक में भी हो सकती है।
इस तरह से हुआ 27 लाख का घोटाला
3 जनवरी को नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 150 संफाई ठेका कर्मियों के लिये टेंडर आमंत्रित किया गया था। 4 फरवरी को टेंडर खोला गया, जिसमें 3 संत्रिदाकारों ने दरें प्रस्तुत की थी। कृष्णा फैसलिटीज सर्विसेज की दर -15.75 % सबसे कम थी। इसलिये बाकी 7 संविदाकारों ने अपनी अमानत राशि वापस लेकर इस स्पर्धा से अपने हाथ खींच लिये। इसके बाद जोर-दबाव का क्रम शुरू हुआ तो निगम प्रश्वसन ने एल-वें स्थान पर रही फर्म केके ग्रुप की आधा काम एलॉट कर दिया गया। मानी 75 लेबर की सप्लाई मनमाने तरीके से के ग्रुप को दे दी गई, जबकि उसने न कम न ज्यादा, सरकारी रेट भरा था।
6 महीने का हो गया भुगतान
नगर निगम के सूत्र बताते हैं कि एक भी लेबर सप्लाई किये बिना ही 27 लाख रूपये का भुगतान किया है, क्योंकि किसी भी कंपनी से यदि 75 लेबर की डिमांड की जाती है तो वह महीने के 30 दिन 25 लेबर नहीं दे पाती है। दो-चार लेबर तो प्रतिदिन कम ही हो जाते हैं, लेकिन ठेकेदार को उपकृत करने के लिये 6 माह में एक भी लेबर की अनुपस्थिति नहीं दिखागी गई है. जिससे स्पष्ट है कि फर्जी तरीके से उपस्थिति दर्ज की गई है और बिल बनाने वाले तथा पास करने वाले अधिकारियों ने आंखें बंद कर रखी हैं। इसके अलावा एक और रास्ता है कि जिन लेबर की सप्लाई दिखायी गयी है, शहर में लगे CCTV से उनकी पुष्टि की जा सकती है। इसके अलावा सूत्र ये भी बताते हैं कि नगर निगम आयुक्त NTPC विन्ध्यनगर के बंगले में रहते हैं और इस बंगले में तकरीबन 30-40 लाख रुपये इंटीरियर डिज़ाइन में खर्च कर नया लुक दिया गया है। जिसका ना तो 30-40 लाख रुपये का टेंडरिंग हुआ है और ना ही लेबर खर्च दिखाया गया है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि फर्जीवाड़े के मुख्या स्त्रोत तो बड़ी मछली यानि नगर निगम के सबसे ईंमानदार अधिकारी आयुक्त साहब ही हैं। जिन्होंने अपने फर्जीवाड़े का ठीकरा दूसरे के सिर मढ़कर अपने को पाक-साफ करने में लगे हुए है।
जिलाधिकारी ने नहीं की समीक्षा
कलेक्टर जिले का मुखिया होने के साथ नगर निगम का प्रशासक भी होता है। पिछले कलेक्टर अरूण परमार का ज्यादातर समय चुनाव कराने में ही बीत गया, इसलिये वह नगर निगम की समीक्षा करने नहीं जा पाये चर्चा राजीव रंजन मीणा हों या फिर अनुराग चौधरी, केवीएस चौधरी, सभी सप्तझा में एक बार नगर निगम में जाकर पल रही योजनाओं एवं निर्माण कार्यों को समीक्षा करते थे। उम्मीद की जा रही है कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कलेक्टर चंद्रशेखर शुक्ला भी सप्ताह में एक दिन नगर निगम जाकर वहां चल रही गतिविधियों की समीक्षा करेंगे। जिस तरह मनमानी को जा रही है उसे संज्ञान में लेकर रोक लगाने व संस्था का रुख दुश्मनी की जगह विकास की ओर मोड़ने का जतन करेंगे।
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