जिले में लगभग 40 घंटे से बारिश जारी है। ऐसी स्थिति में धान की फसल को भी नुकसान पहुंचने की आशांका बनी हुई है। यह रोग इसलिए भी सक्रिय होने की आशंका है क्योंकि धान की लगी 90 प्रतिशत धान की उपज संकर प्रजाति के धान की है। चूंकि मौजूदा समय में धान की फसल गलेथ यानि धान में बाली आने वाली है। इस स्थिति में धान को बचाना बहुत ही आवश्यक है।
धान की फसलों का मुआयना करने पहुंचे कृषि विज्ञान केन्द्र के पौध संरक्षण विशेषज्ञ व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जय सिंह ने बताया कि बारिश के कारण कंडवा रोग की आशंका बढ़ती जा रही है। यह रोग चूंकि बाली निकलने के बाद दिखाई देता है एवं बाली निकलने के बाद इस रोग पर नियंत्रण संभव नही हो पाता है। ऐसे स्थिति में किसान भाइयों से आग्रह है कि जब बाली आने वाली है इसी समय नत्रजन का छिड़काव न करें। तथा त्वरित कारबेंडाजिम -50 डब्ल्यूपी की एक ग्राम मात्रा अथवा प्रापीकोनाजोल -5 एससी अथवा टेकुकोनाजोलन एजोस्ट्रीविन की 1.5 मिग्रा एक लीटर पानी की दर से एक सप्ताह के अंतराल में दो बार छिड़काव करें। क्योंकि इस रोग के कारण 40 प्रतिशत तक उपज का नुकसान होने की आशंका बन जाती है। यह रोग न केवल उत्पादन को प्रभावित करता है बल्कि यह चावल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। वर्तमान में कहीं-कही जीवाणु पर्ण झुलसा रोग का भी संक्रमण देखा जा रहा है। इस रोग से संक्रमित पौधों की पत्तियां शीर्ष से दोनों किनारों को लेकर सूखना शुरू हो जाती है। अनुकूल वातावरण से वर्षा की स्थिति में शीघ्र पूरा पौधा झुलस जाता है। यह रोग छायादार स्थान से आरंभ होता है।
इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हो किसान भाई सर्वप्रथम नाइट्रोजन का छिड़काव बबंद कर दें, खेत से पानी निकाल दें, गया प्रारम्भिक अवस्था के 1 प्रतिशत ताजे गाय के गोबर के अर्क का छिड़काव करें। भारी संक्रमण की सम्भावना में कापर आक्सीक्लोराइड 45 ग्राम मात्रा के साथ स्ट्रेप्टोमाइसीन की 6 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना लाभप्रद होगा।
श्वेत पखियारी के संक्रमण से भी बचें
डॉ. जय सिंह बताते है कि इसके अतिरिक्त इस वर्ष धान के खेत में पृष्ठ अथवा भूरा फूंदक जिसे सफेद पखियारी रोग भी कहते है उसका संक्रमण प्रारम्भ हो गया है। यह बीच में गोलाकार आकार में जली हुई प्रतीत होती है। समीप से निरीक्षण करने पर पानी की सतह के उपर तने पर श्वेत पृष्ठ भूरा फू दक चिपके रहते है। जिनके रस चूसने पर पौधे जले हुए प्रतीत होते है। इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते ही किसान भाई खेत से पानी को निकाल देवे तथा यूरिया के छिड़काव बंद कर पाइमेट्रोजीन 50 डब्ल्यू जो की 12 ग्राम अथवा थायोमेक्सिम 25 डब्ल्यूजी की 6 ग्राम अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एमएन की 8 ग्राम मात्रा प्रति टंकी की दर से घोला बना कर छिड़काव करें।
गंधी कीट से भी करें बचाव
इस मौसम में धान में गंधी कीट के संक्रमण भी होता है जिसको रोकने के लिए किसान भाई अपने खेतों में जंगली पौधे भेलवा या सलया की दो फीट ऊंची टहनी को 15-20 की संख्या में प्रति एकड़ की दर जमीन में गाड दें। जहां पर 50 प्रतिशत से अधिक बालियां निकल गई हो ऐसे खेतों में गंधी कीट के संक्रमण को कम करने के लिए साइपरमेथ्रिन 1.15 मिली प्रति एक लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड. 17.8 एमएल की 0.4 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना अत्यंत लाभप्रद होगा। किसान भाई उपरोक्तानुसार एक एकड़ के 200 लीटर जलीय घोल का छिड़काव बना कर करना आवश्यक है। यदि किसी प्रकार की समस्या है तो समाधान के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से सलाह ली जा सकती है।